कविता
है क्रंदन अब भी
इस कविता में
रिस रहा है अब भी
सुख दुख
जीवन के रोम रोम से
ऐ ओस की बुंदों
शीतल कर दो
इस तन मन को
रात के अंधेरे में
एक नई
सुबह होने तक।
विष्णु माथुर
बम्बई
सितंबर ८,२०१६।
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There is still a wail
In this poem
Joys and sorrows
Are dripping
From the pores
Of this life
Oh due drops
Cool this body and mind
In the darkness
Of the night
Before
The dawn appears.
Vishnu Mathur
Mumbai
September 8,2016